Monday 26 July 2010

शिव मोहन यादव की कविता "गुड़िया"

गुडिय़ा
पापा मुझको देते प्यार,
मम्मी ममता देती।
मैं पापा की प्यारी गुडिय़ा,
जो चाहूं सो करती।।
दादा मुझे खिलाते बिस्कुट
खूब पेट भर खाती।
दादीजी की पकड़ के अंगुली
मेला देखने जाती।।
अगर कभी मैं जाऊं रूठ
मुझको सभी मनाते।
नाना-नानी बैठ शाम को
लोरी मुझे सुनाते।।

 शिवमोहन यादव,कानपुर, देहात
097956 24197

Tuesday 20 July 2010

नीरज दइया की कविता

बच्चा
डरता है बच्चा
अंधेरे से
डरता-डरता 
वह सीखता है-
नहीं डरना।

एक दिन
आता है ऐसा
भरी दोपहरी
बच्चा पहचान लेता है
उजास में अंधेरा।

बच्चा
जब पहचान लेता है-
अंधेरा


बच्चा 
बच्चा नहीं रहता
दबने लगता है
भार से
करने लगता है 
युद्ध
अंधेरे की 
मार से।

नीरज दइया
मोबाइल : 9461375668
neerajdaiya@gmail.com

Sunday 18 July 2010

राजा चौरसिया की बाल कविता


दादाजी 
दादाजी हो गए रिटायर
लगे काम में रहते अब भी
पहले जैसी मुस्तैदी से
देखभाल करते हैं घर की।

वे जस के तस स्वस्थ मस्त हैं
जैसे फिर जी रहे जवानी
देख चमक चेहरे पर मुझको
अक्सर होती है हैरानी।

कारण पूछा तो दादाजी
बोले, सुन लो प्यारे पोते
जो हरदम सक्रिय रहते
कभी नहीं वे बूढ़े होते।।

-राजा चौरसिया
उमरियापान, जिला: कटनी, 
म.प्र., पिन कोड- 483332

Saturday 17 July 2010

घमंडीलाल अग्रवाल की बाल कविता 'पानी'

पानी

थल पर पानी, नभ में पानी
पानी तेरी अजब कहानी।

पानी से भोजन पकता है
पानी से भोजन पचता है
पानी घर की करे धुलाई
पानी तन की करे सफाई
पानी है जीवों का जीवन
रोज़ बताती बूढ़ी नानी।

सब्जी और फलों में पानी
 कूपों और नलों में पानी
 है पहचान नदी की पानी
रहती मांग सभी की पानी
सच पूछो काले बादल ने
पानी की कीमत पहचानी।

पानी को मत व्यर्थ गंवाओ
पानी पीकर प्यास बुझाओ
पानी स्वच्छ रहे तो अच्छा
पानी नहीं बहे तो अच्छा
पानी कितना उपयोगी है
सच्चाई दुनिया ने मानी।

पानी बिना जिंदगी सूनी 
पानी देता सुविधा दूनी
पानी की हर बात विचारो
मत आंखों का पानी मारो
पानी रखना सीखो बच्चो
होना पड़े न पानी-पानी।

घमंडीलाल अग्रवाल
785/8, अशोक विहार,
गुडग़ांव-122001, (हरियाणा)
मोबाइल :09210456666
दूरभाष :0124-2255570

Friday 16 July 2010

बाल कविता

कितना अद्भुत देश
रोबिन, रंगा, गुलशन, गंगा।
आओ खेलें अंगा-बंगा।।
आंटा-सांटा पुरी परांठा।
चौपड़पासा किलकिल कांटा।।
मछली रानी संमदर पानी।
ताल मिलाए दादी-नानी।।
लंगड़ी घोड़ी, कच्ची घोड़ी।
गबलू, बबलू जंगम जोड़ी।।
बाग बहारें सोलह सारें।
इस मस्ती पर सब कुछ वारें।।
अटकन-बटकन दही चटोकन।
खेल-खेल में थिरके तन-मन।।
चाँद-सितारे अपने सारे। 
हम न कभी दुनिया में हारे।।
घर-घर प्यारा रामदुलारा।
कितना अद्भुत देश हमारा।।

-भगवतीप्रसाद गौतम
1-त-8, दादाबाड़ी,
कोटा-324009, राजस्थान
फोन : 0744-2504165
मोबाइल : 09461182571

Wednesday 14 July 2010

बाल कविता

भालू राजा / सुकीर्ति भटनागर

भर गर्मी में भालू राजा,
हुए बड़े बेहाल।
एक तो उनका रंग था काला,
और थे ढेरों बाल।।

तौबा-तौबा, कितनी गर्मी,
बाल तो है जंजाल।
भीखू नाई की दुकान पर,
कटवा लंू मैं बाल।।
भीखू की दुकान तक जाते,
भालू हुआ बेहाल।
डाल से उतरा भीखू बंदर,
पल में काटे बाल।।

ऐस करो अब भालू भैया,
घूमो नैनीताल।
ठंड लगे तो बनवा लेना,
इन बालों की शाल।।

-432, अरबन एस्टेट, फेज-प्रथम, पटियाला-147002, पंजाब

दो शिशु कवितायेँ / शिवमोहन यादव

चिडिय़ा
फुदक रही है चिडिय़ा रानी
खाती दाना पीती पानी
जब भी रोते उसके बच्चे
गाकर लोरी कहे कहानी।।

सरकस
देखो सरकस आया भालू
बोला-महंगाई है चालू
उसने मांगी रोटी दाल
ये ही है गरीब का हाल।।

शिवमोहन यादव, कानपुर, उ.प्र.
मो. 097956 24197

दामाद-सप्तक / रामेश्वर शर्मा

दामाद-सप्तक
हर लड़के की इच्छा होती, वह भी एक दामाद बने।
किसी और के घर की वह भी, कानूनी औलाद बने।।
एक अकेली बेटी वाला, मिल जाये ससुराल उसे,
सास-ससुर की सम्पत्ति का, द्वार दौलताबाद बने।।
हर लड़के की इच्छा होती, एक मनोहर पत्नी की,
जो उसकी हर इच्छाओं का, अनुगामी अनुवाद बने।।
मिले अमृता जैसी कोई, कामवर्धिका लतिका नार,
सहवासी पाशों में जिससे, विश्वासी संवाद बने।।
कोई उंडेले उसके तन पर, घट शरबतिया भर-भर कर
सराबोर हो रतिया-रस में, स्वयं शर्बताबाद बने।।
वंशवृद्धि के मैदानों में, चाहे चौका नहीं लगे
कम से कम रन एक बने पर, वह रन तो नाबाद बने।।
बिना दाम के दामादों की, बने नगरिया छोटी सी,
रामूजी की ख्वाहिश है कि, इक दामादाबाद बने।।

-रामेश्वर शर्मा 'रामू भैया', दादाबाड़ी, कोटा
मोबाइल नं. 09314081109

चूँ-चूँ चूहा/ दीनदयाल शर्मा

 चूँ-चूँ चूहा / दीनदयाल शर्मा
 चूँ-चूँ चूहा बोला- मम्मी,
मैं भी पतंग उड़ाऊँगा ।
लोहे-सी मज़बूत डोर से,
मैं भी पेच लड़ाऊँगा ।

मम्मी बोली- तुम बच्चे हो,
बात पेच की करते हो ।
बाहर बिल्ली घूम रही है,
क्या उससे नहीं डरते हो ?

चूँ-चूँ बोला- बिल्ली क्या है,
उसे करूँगा 'फेस'।
मैंने पहन रखी है मम्मी
काँटों वाली ड्रेस ।

Monday 5 July 2010

समझण / दीनदयाल शर्मा

सुसरो जी
बहु सूं बोल्या-
बीनणी
तंू आपरी
सासू रो
बुरौ ना मानी
अर आ' ना सोची
कै ईं रै
बोलण री
आ' के तमीज है
आ' बापड़ी
मीठी तो ईं कारण
नीं बोलै
कै
सूगर री मरीज है।

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