Tuesday, 20 July 2010

नीरज दइया की कविता

बच्चा
डरता है बच्चा
अंधेरे से
डरता-डरता 
वह सीखता है-
नहीं डरना।

एक दिन
आता है ऐसा
भरी दोपहरी
बच्चा पहचान लेता है
उजास में अंधेरा।

बच्चा
जब पहचान लेता है-
अंधेरा


बच्चा 
बच्चा नहीं रहता
दबने लगता है
भार से
करने लगता है 
युद्ध
अंधेरे की 
मार से।

नीरज दइया
मोबाइल : 9461375668
neerajdaiya@gmail.com

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