Wednesday, 14 July 2010

बाल कविता

भालू राजा / सुकीर्ति भटनागर

भर गर्मी में भालू राजा,
हुए बड़े बेहाल।
एक तो उनका रंग था काला,
और थे ढेरों बाल।।

तौबा-तौबा, कितनी गर्मी,
बाल तो है जंजाल।
भीखू नाई की दुकान पर,
कटवा लंू मैं बाल।।
भीखू की दुकान तक जाते,
भालू हुआ बेहाल।
डाल से उतरा भीखू बंदर,
पल में काटे बाल।।

ऐस करो अब भालू भैया,
घूमो नैनीताल।
ठंड लगे तो बनवा लेना,
इन बालों की शाल।।

-432, अरबन एस्टेट, फेज-प्रथम, पटियाला-147002, पंजाब

5 comments:

  1. बहोत सुन्दर रचना है....
    ____________________
    My new post:- fathers day card and cow boy

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  2. बहुत ही सुन्दर!
    बहुत-बहुत बधाई!
    आपकी चर्चा तो यहाँ भी है-
    http://mayankkhatima.blogspot.com/2010/07/2010.html

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  3. बहुत सुंदर !
    मज़ा आ गया!
    बचपन याद आ गया ज़िंदगी का सब से अच्छा दौर

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  4. Bhai Deendayal ji,
    Nameskar,
    Sukirti bhatnager ki rachana bhalu Raja bhut hi payri or manorejen se bherpur h.
    Sadu-bad
    NARESH MEHAN

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