Wednesday, 14 July 2010

दामाद-सप्तक / रामेश्वर शर्मा

दामाद-सप्तक
हर लड़के की इच्छा होती, वह भी एक दामाद बने।
किसी और के घर की वह भी, कानूनी औलाद बने।।
एक अकेली बेटी वाला, मिल जाये ससुराल उसे,
सास-ससुर की सम्पत्ति का, द्वार दौलताबाद बने।।
हर लड़के की इच्छा होती, एक मनोहर पत्नी की,
जो उसकी हर इच्छाओं का, अनुगामी अनुवाद बने।।
मिले अमृता जैसी कोई, कामवर्धिका लतिका नार,
सहवासी पाशों में जिससे, विश्वासी संवाद बने।।
कोई उंडेले उसके तन पर, घट शरबतिया भर-भर कर
सराबोर हो रतिया-रस में, स्वयं शर्बताबाद बने।।
वंशवृद्धि के मैदानों में, चाहे चौका नहीं लगे
कम से कम रन एक बने पर, वह रन तो नाबाद बने।।
बिना दाम के दामादों की, बने नगरिया छोटी सी,
रामूजी की ख्वाहिश है कि, इक दामादाबाद बने।।

-रामेश्वर शर्मा 'रामू भैया', दादाबाड़ी, कोटा
मोबाइल नं. 09314081109

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