दृढ़ निश्चय वाला बालक
आठ-दस छोटे-छोटे बालक स्कूल से घर लौट रहे थे। रास्ते में आम का एक बाग पड़ता था। वृक्षों पर लगे पीले-पीले रंग के रसील आम देखकर बालकों के मुंह में पानी भर आया। और उन्होंने पत्थर उठाकर वृक्षों पर लगे आमों पर मारने शुरू कर दिए। आम तड़ातड़ नीचे गिरने लगे। लेकिन एक छोटा-सा बालक चुपचाप खड़ा अपने साथियों यकी हरकतें देखता रहा। उसका एक साथी बोला- क्यों रे नन्हा, देख क्या रहा है? आम नहीं तोड़ेगा क्या? फिर हम नहीं खिलाएंगे, अभी मौका है। तोड़ ले दो चार।
नन्हा बोला- मैं तो नहीं तोड़ता, जाओ मुझे नहीं खाने ऐसे चोरी के आम। उसका साथी वापस चला गया। तो नन्हा इधर-उधर ताकने लगा। अचानक उसकी नज़र बुलाब के फूलों की तरफ गई तो उसका मन ललचाया। और उसने एक गुलाब का फूल चुपके से तोड़ लिया। इतने में ही माली गालियां देता हुआ आ धमका। सब बच्चे भाग गए, लेकिन नन्हा नहीं भागा। वह हाथ में गुलाब का फूल छिपाए वहीं खड़ा रहा। माली ने नन्हे को देखा तो उसे जा दबोचा और कान पकड़कर नन्हे के गाल पर तीन-चार चांटे लगा दिए।
मुझे थप्पड़ क्यों मारा? नन्हा बोला। तुझे पता है मेरे पिता नहीं है। इतना कहते ही नन्हा सुबकने लगा। तब तो तुझे दो-चार चपत और लगनी चाहिए। एक तो बाप नहीं है और ऊपर से चोरी करता है। तुझे तो बहुत ही अच्छा आदमी बनना चाहिए। माली ने गुस्से से कहा।
यह सुनते ही उस नन्हे बालक ने सुबकना तो बंद कर दिया और माली की बात का दृढ़ निश्चय कर दिया कि वह अब अच्छा आदमी ही बनेगा। और यही नन्हा बालक जिसने एक दिन अच्छा आदमी बनने का संकल्प किया था। वह कोई और नहीं, बल्कि उसका नाम था- लाल बहादुर शास्त्री। जो अपनी ईमानदारी और दृढ़ निश्चय के बलबूते पर 6 जून 1964 को शनिवार के दिन भारत का दूसरा प्रधान मंत्री बना। - दीनदयाल शर्मा