ऊंट हमारा मामा लगता
घोड़ा अपना भाई है
चरते-चरते बात पते की
मम्मी ने बतलाई है।
मम्मी ने बतलाई है।
खाल हमारी ऐसी जैसे
ओढा हुआ लिहाफ है
अपना नाम जिराफ है।
इतनी बड़ी कुलाँचे अपनी
हिरन देखकर शरमाता
पेड़ों का मस्तक जब देखो
हमें देख कर झुक जाता।
चाहे कोई दुश्मन समझे
अपना मन तो साफ है
अपना नाम जिराफ है।
हिंसा में विश्वास नहीं है
शाकाहारी कहलाते
बल-प्रयोग तब ही करते
जब संकट में घिर जाते।
जब तक कोई नहीं छेड़ता
तब तक सब कुछ माफ है
अपना नाम जिराफ है।
रमेश कौशिक (जन्म 19 मार्च 1930,खुर्जा, उ0प्र0 - निधन 27 सितंबर 2009, नोएडा, उ0प्र0) के अब तक ग्यारह कविता-संग्रह, चार विदेशी कविताओं के अनुदित संग्रह,पाँच बालगीत-संग्रह,चार लोककथा तथा जीवनी-साहित्य से संबधित पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। अनेक रचनाएँ नर्सरी से लेकर एम0ए0 तक पाठ्यक्रमों में निर्धारित तथा पी-एच0डी0 के लिए शोध का विषय्।
1977 में सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार और 1990 में बल्गारिया लेखक संघ के सर्वोच्च पुरस्कार-पेगासस स्वर्णपदक से हुए। बालसाहित्य के लिए उन्हें उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान से 1980 में और हिंदी अकादमी, दिल्ली से 1982-83,1987-88और 1996-97 में पुरस्कार मिला।
रमेश कौशिक की अनेक रचनाएँ अँग्रेजी, बल्गारियाई, रूसी,लिथुनिआई, बंगला और पंजाबी भाषा में अनूदित हो चुकी हैं।
विदेशों में अयोजित अनेक अंतर्राष्ट्रीय लेखक-सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया तथा अध्यक्ष होने का गौरव प्राप्त किया।
कृतियाँ :
काव्य-संग्रह : सुबह की धूप(1956), समीप और समीप (1970), चाहते तो (1973), सच सूर्य है(1979), सुनहले पंख (1983), क्रमश (1990),कहीं कुछ था (1996), कहाँ हैं वे शब्द (20000),मैं यहाँ हूँ(20004),यहाँ तक वहाँ से (2008)
अनुवाद:101 सोवियत कविताएँ (1975),रूसी और सोवियत प्रेम कविताएँ(1978),रूसी बाल-कविताएँ(1979),बल्गारियाई कविताएँ(1985)
बालकाव्य-संग्रह : हम हैं चाँद सितारे (1978), सोनचिरैया (1982),51बाल-कविताएँ (1988),गीत मेरे देश के (1996),151 बाल-कविताएँ(2001)
कथासाहित्य: दो सिर वाला दैत्य(1990),सागर द्वीपों की लोककथाएँ (भाग-1 व 2)(1996)
जीवनी : महर्षि अरविंद (1994)
बहुत प्यारी कविता....
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'पाखी की दुनिया' में आपका स्वागत है.