रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
मेरा घोड़ा
लम्बा –चौड़ा
बहुत अनाड़ी ।
खाकर पत्ती
मार दुलत्ती
खींचे गाड़ी ।
सरपट दौड़े
पीछे छोड़े
नदी पहाड़ी ।
देखे –भाले
पोखर नाले
टीले झाड़ी ।
काली बिल्ली
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
काली बिल्ली
छोड़ गाँव को
भागी-भागी
आई दिल्ली ।
दौड़ लगाई,
लाल किले तक
मिला नहीं पर
दूध मलाई ।
दिन-भर भटकी ,
गली-गली में
चौराहों पर
आकर अटकी ।
अब यह आई,
बात समझ में-
जीभ चटोरी
है दुखदायी ।
bahut mazedaar
ReplyDeletesundar prastuti.
ReplyDeleteलकड़ी की काठी
ReplyDeleteकाठी पे घोड़ा
घोड़े की दुम्म पे
जो मारा हथौड़ा
दौड़ा-दौड़ा-दौड़ा...
घोड़ा दुम्म उठाकर दौड़ा...
ठीक है न ???