Friday, 27 August 2010

2 बाल कविताएँ / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

मेरा घोड़ा
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
मेरा घोड़ा
लम्बा –चौड़ा
बहुत अनाड़ी ।
खाकर पत्ती
मार दुलत्ती
खींचे गाड़ी ।
सरपट दौड़े
पीछे छोड़े
नदी पहाड़ी ।
देखे –भाले
पोखर नाले
टीले झाड़ी ।
काली बिल्ली
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
काली बिल्ली
छोड़ गाँव को
भागी-भागी
आई दिल्ली ।
दौड़ लगाई, 
लाल किले तक
मिला नहीं पर
दूध मलाई ।
दिन-भर भटकी , 
गली-गली में
चौराहों पर
आकर अटकी ।
अब यह आई, 
बात समझ में-
जीभ चटोरी
है दुखदायी ।

3 comments:

  1. लकड़ी की काठी
    काठी पे घोड़ा
    घोड़े की दुम्म पे
    जो मारा हथौड़ा
    दौड़ा-दौड़ा-दौड़ा...
    घोड़ा दुम्म उठाकर दौड़ा...
    ठीक है न ???

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