Saturday, 14 August 2010

जादू की पुड़िया सा मौसम / जा़किर अली ‘रजनीश’







जादू की पुड़िया सा मौसम 


कभी ताड़ सा लम्बा दिन है कभी सींक सा लगता।
जादू की पुड़िया  सा मौसम, रोज बदलता रहता।।

कुहरा कभी टूट कर पड़ता, चलती कभी हवाएँ।
आए कभी यूँ आँधी कि कुछ समझ में नहीं आए।

जमने लगता खून कभी तो सूरज कभी पिघलता।।
जादू की पु‍डिया सा मौसम, रोज बदलता रहता।।

कभी बिकें अंगूर, अनार व कभी फलों का राजा।
कभी–कभी हैं बिकते जामुन बाज़ारों में ताज़ा।

लीची आज और कल आड़ू, मस्ती भरा उछलता।
जादू की पुड़िया  सा मौसम, रोज बदलता रहता।।

बढ़ता जाता समय तेज गति हर कोई बतलाए।
छूट गया जो पीछे, वो फिर लौट कभी न आए।

पछताए वो, काम समय से जो अपना न करता।
जादू की पुड़िया  सा मौसम, रोज बदलता रहता।।




जन्म: 03 अगस्त 1973
उपनाम
‘रजनीश’
जन्म स्थान
लखनऊ, उत्तर प्रदेश, भारत।
कुछ प्रमुख
कृतियाँ
हिन्दी में पटकथा लेखन (स्क्रिप्ट राइटिंग), गिनीपिग (उपन्यास), विज्ञान कथाएं (विज्ञान कथा संग्रह). सात सवाल, हम होंगे कामयाब, समय के पार (सभी बाल उपन्यास), मैं स्कूल जाऊंगी, सपनों का गाँव, चमत्कार, हाज़िर जवाब, कुर्बानी का कर्ज़, ऐतिहासिक गाथाएँ, सराय का भूत, अग्गन-भग्गन, सोने की घाटी, सुनहरा पंख, सितारों की भाषा, विज्ञान की कथाएँ, ऐतिहासिक कथाएँ, साहसिक कहानियाँ, मनोवैज्ञानिक कहानियाँ, प्रेरक कहानियाँ, ज़ाकिर अली 'रजनीश' की श्रेष्ठ बाल कथाएँ (सभी बाल कहानी संग्रह), इक्कीसवीं सदी की बाल कहानियाँ, एक सौ इक्यावन बाल कविताएँ, तीस बाल नाटक, प्रतिनिधि बाल विज्ञान कथाएँ, ग्यारह बाल उपन्यास (सभी सम्पादित)।








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