Saturday 25 December 2010

सर्दी / दीनदयाल शर्मा



सर्दी आई

सर्दी आई सर्दी आई
ओढ़ें कम्बल और रजाई
ज्यों-ज्यों सर्दी बढ़ती जाए
कपड़ों की हम करें लदाई।

मिलजुल सारे आग तापते
रात-रात भर करें हथाई।
भाँति-भाँति के लड्डू खाकर
सर्दी पर हम करें चढ़ाई।

सूरज निकला धूप सुहाई
सर्दी की अब शामत आई।
फाल्गुन आया होली आई
सर्दी की हम करें विदाई।।


 

Thursday 23 December 2010

मां तूं घणी महान / दीनदयाल शर्मा


मां तूं घणी महान 

दुनिया दिखाई म्हानै
माणस बणाया म्हानै
गीलै में खुद तूं सोई
सूकै सुयाया म्हानै
जग में बणाई स्यान
मां तूं घणी महान।।

तेरी थां न कोई लेवै
भगवान भी है छोटौ
तेरौ हाथ म्हारै सिर पर
कियां पड़ैगौ टोटौ
जीवण दियौ तूं दान
मां तूं घणी महान।।

चरणां में तेरै अरपित
जीवण सदा मैं करस्यूं 
करजाऊ सदांई रै'स्यूं 
करजौ कियां मैं भरस्यूं 
दिन-रात तेरौ ध्यान
मां तूं घणी महान।।

-दीनदयाल शर्मा,
बाल साहित्यकार,
हनुमानगढ़, राजस्थान
मोबाइल : 09414514666

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