Saturday, 5 June 2010

दीनदयाल शर्मा की हास्य कविता / धापी


धापी 

बोदियै बजार में
खड़ी बूढळी धापी
प्रौढ शिक्षा में
 जावै ही पढण
ले'र कापी।

ताजा होयोड़ी ही
बरसात
तिसळगी हातोहात,
इत्ती दूर गई कापी
कै
नापणियै ईं नापी।

सा'मै स्यूं आयौ डैण
मिला नैण स्यूं  नैण
कन्नै आयौ टुळक'र
फेर बोल्यौ मुळक'र
लै' पकड़ प्रिय कापी
अर देखती रै'गी धापी।


बा' सोचण लागी
मन में
अर झुरझरी छुट्टी
तन में....
कै भरी जुवानी नीं
पट्यौ कोई पापी
अर बुढापै में
राममारयो 
पटग्यौ आपी।

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