Thursday 10 November 2011

दादीजी का चश्मा / डॉ. नागेश पांडेय 'संजय'



दादीजी का चश्मा
दादीजी का चश्मा खोया,
सबकी आफत आई.

सब मिल खोज रहे हैं फिर भी
पड़ा नहीं दिखलाई.

दादी अपने सर पर देखो,
मीना जब चिल्लाई.

राम राम फिर गजब हो गया
दादीजी शरमाई.

Mob. 094516 45033

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर ..बाल कविता ...

    रुको रुको चुलबुल बुलबुल तुम
    दादी जी चिल्लायीं
    छड़ी उठाईं

    भ्रमर ५
    बाल झरोखा सत्यम की दुनिया

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