Thursday 31 March 2011

अक्कड़-बक्कड़ / दीनदयाल शर्मा

अक्कड़-बक्कड़
 अक्कड़-बक्कड़ बोकरी
बाबाजी की टोकरी ।

टोकरी से निकला बंदर
बंदर ने मारी किलकारी
किलकारी से हो गया शोर
शोर मचाते आ गए बच्चे
बच्चे सारे मन के कच्चे

कच्चे-कच्चे खा गए आम
आम के आम गुठली के दाम
दाम बढ़े हो गई महंगाई
महंगाई में पड़े न पार
पार करें हम कैसे नदिया
नदिया में नैया बेकार

बेकार भी हो गई पेटी
पेटी में ना पड़ते वोट
वोट मशीनों में है बटन
बटन दबाओ पड़ गए वोट
वोट से बन गए सारे नेता
नेता भी लगते अभिनेता

अभिनेता है मंच पे सारे
सारे मिलकर दिखाते खेल
खेल देखते हैं हम लोग
लोग करें सब अपनी-अपनी
अपनी डफली अपना राग

राग अलापें अजब-गजब हम
हम रहते नहीं रलमिल सारे
सारे मिलकर हो जाएँ एक
एक-एक मिल बनेंगे ताकत
ताकत सफलता लाएगी
लाएगी खुशियाँ हर घर-घर
घर-घर दीप जलाएगी ।


2 comments:

  1. मजेदार कविता

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  2. बटन दबाओ पड़ गए वोट
    वोट से बन गए सारे नेता
    नेता भी लगते अभिनेता
    सुन्दर रचना नेता तो खुद को भगवान बना लेते हैं अभिनेता ही क्या - हिंदी जगत में योगदान के लिए बधाई आइये सब मिल एक नई धरा में प्रेम की धारा प्रवाहित करें

    हमारे अन्य ब्लॉग पर भी अपने समर्थन व् सुझाव के साथ आइये न

    सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५

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