Saturday, 25 December 2010

सर्दी / दीनदयाल शर्मा



सर्दी आई

सर्दी आई सर्दी आई
ओढ़ें कम्बल और रजाई
ज्यों-ज्यों सर्दी बढ़ती जाए
कपड़ों की हम करें लदाई।

मिलजुल सारे आग तापते
रात-रात भर करें हथाई।
भाँति-भाँति के लड्डू खाकर
सर्दी पर हम करें चढ़ाई।

सूरज निकला धूप सुहाई
सर्दी की अब शामत आई।
फाल्गुन आया होली आई
सर्दी की हम करें विदाई।।


 

2 comments:

  1. प्यारी कविता..अंडमान में तो सर्दी आती ही नहीं...

    ____________________
    'पाखी की दुनिया' में तन्वी अब दो माह की...

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  2. सर्वे भवन्तु सुखिनः । सर्वे सन्तु निरामयाः।
    सर्वे भद्राणि पश्यन्तु । मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्॥
    सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें, और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े .

    नव - वर्ष 2011 की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !

    -- अशोक बजाज , ग्राम चौपाल

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