Saturday 23 October 2010

समझ / हरदीप कौर संधु

समझ

जब तू नन्हा सा था

माँ की गोद में खेलता था 

तुतला-तुतला बोलता था

माँ समझ जाती थी

तेरी हर तोतली बात

अब तू हो गया बहुत बड़ा  

हर बात साफ-साफ बोलता

 बात-बात पर तू यह कहता

माँ तू  समझ नहीं.....मेरी बात



अपनी माँ को न: समझ बताकर


खुद को बहुत समझदार समझता!!

हरदीप कौर संधु   
http://shabdonkaujala.blogspot.com/



4 comments:

  1. दीनदयाल शर्मा जी,
    आपका बहुत-बहुत धन्यवाद ।
    मेरी इस कविता को अपने ब्लॉग पर लगाने के लिए।
    हर कोई ऐसा तो नहीं है न:समझ...
    जिसे माँ के भावों का आदर करना न आता हो...
    मगर आपको ऐसे मिल ही जाते हैं...
    इसे मैं Generation gap नहीं कहूँगी,
    माँ का अनुभव हमेशा से बेटा या बेटी से ज़्यादा ही होता है ।

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  2. बहुत सुंदर कविता .... माँ तो सबसे समझदार होती है...

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  3. सुन्दर भावों की सरल और सहज कविता के लिए डॉ. साहिबा हरदीप संधू का हार्दिक धन्यवाद...

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