Tuesday 28 September 2010

अक्कड़-बक्कड़ / दीनदयाल शर्मा

अक्कड़-बक्कड़ / दीनदयाल शर्मा

अक्कड़-बक्कड़ बोकरी
बाबाजी की टोकरी ।

टोकरी से निकला बंदर
बंदर ने मारी किलकारी
किलकारी से हो गया शोर
शोर मचाते आ गए बच्चे
बच्चे सारे मन के कच्चे

कच्चे-कच्चे खा गए आम
आम के आम गुठली के दाम
दाम बढ़े हो गई महंगाई
महंगाई में पड़े न पार
पार करें हम कैसे नदिया
नदिया में नैया बेकार

बेकार भी हो गई पेटी
पेटी में ना पड़ते वोट
वोट मशीनों में है बटन
बटन दबाओ पड़ गए वोट
वोट से बन गए सारे नेता
नेता भी लगते अभिनेता

अभिनेता है मंच पे सारे
सारे मिलकर दिखाते खेल
खेल देखते हैं हम लोग
लोग करें सब अपनी-अपनी
अपनी डफली अपना राग

राग अलापें अजब-गजब हम
हम रहते नहीं रलमिल सारे
सारे मिलकर हो जाएँ एक
एक-एक मिल बनेंगे ताकत
ताकत सफलता लाएगी
लाएगी खुशियाँ हर घर-घर
घर-घर दीप जलाएगी ।


Sunday 26 September 2010

बालिका दिवस-2010

बालिका दिवस-2010

26 सितंबर का दिन बेटियों के लिए खास है। इस बार 26 सितंबर को ‘बालिका दिवस’ है। कुछ साल पहले तक मां, पिता और बेटे से लेकर दोस्त तक सभी के नाम पर साल में कोई न कोई एक दिन जरूर तय रहता था, मगर बेटियों के नाम पर कोई दिन नहीं होता था। इसी कमी को देखते हुए बेटियों के लिए भी एक दिन चुना गया, जिसे अब ‘बालिका दिवस’ के रूप में मनाया जा रहा है। ‘बालिका दिवस’ हर सितंबर के चौथे रविवार को मनाया जाता है। इस लिहाज से इस बार ‘बालिका दिवस’ 26 सितंबर को है।

‘चाईल्‍ड राइट्स एंड यू ‘क्राई’’ (‘क्राई’) और ‘यूनिसेफ’ ने पहली बार ‘बालिका दिवस’ साल 2007 के सितंबर के चौथे रविवार यानी 23 सितंबर 2007 को मनाया था। इस तरह ‘बालिका दिवस’ की शुरुआत 2007 से हुई। यह दिन उन सभी लोगों के लिए खास दिन है, जिन्हें बेटियों से प्यार है। आज भी हमारे समाज में बेटियों के जन्म लेने पर खुशियां नहीं मनाई जाती हैं और बेटों की तरह उन्हें अच्छी परवरिश भी नहीं दी जाती है। इसी भेदभाव को दूर करने के लिए ‘क्राई’, ‘यूनिसेफ’ और ‘आर्चीज’ ने मिलकर ‘बालिका दिवस’ की शुरुआत की थी। अब ‘बालिका दिवस’ न सिर्फ भारत में, बल्कि कई ऐसे देशों में मनाया जा रहा है, जहां बेटियों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता है। इस दिन को परिवार में बेटी के संबंधों को समर्पित किया गया है।

आज हजारों लड़कियों को जन्म लेने से पहले ही मार दिया जाता है या जन्म लेते ही लावारिस छोड़ दिया जाता है। आज भी समाज में कई घर ऐसे हैं, जहां बेटियों को बेटों की तरह अच्छा खाना और अच्छी शिक्षा नहीं दी जा रही है। भारत में 20 से 24 साल की शादीशुदा औरतों में से 44.5 प्रतिशत (करीब आधी) औरतें ऐसी हैं, जिनकी शादियां 18 साल के पहले हुईं हैं। इन 20 से 24 साल की शादीशुदा औरतों में से 22 प्रतिशत (करीब एक चौथाई) औरतें ऐसी हैं, जो 18 साल के पहले मां बनी हैं। इन कम उम्र की लड़कियों से 73 प्रतिशत (सबसे ज्यादा) बच्चे पैदा हुए हैं। फिलहाल, इन बच्चों में 67 प्रतिशत (दो-तिहाई) कुपोषण के शिकार हैं।

1991 की जनगणना से 2001 की जनगणना तक, हिन्दु और मुसलमानों- दोनों की ही जनसंख्या वृद्धि दर में गिरावट आई है। मगर, 2001 की जनगणना का यह तथ्य सबसे ज्यादा चौंकता है कि 0 से 6 साल के बच्चों के लिंग अनुपात में भी भारी गिरावट आई है। देश में बच्चों का लिंग अनुपात 976:1000 (1000 लड़कों पर 976 लड़कियां) है, जो कुल लिंग अनुपात 992:1000 (1000 पुरुष पर 992 महिलाएं) के मुकाबले बहुत कम है। यहां कुल लिंग अनुपात में 8 के अंतर के मुकाबले बच्चों के लिंग अनुपात में अब 24 का अंतर दर्ज है। यह उनके स्वास्थ्य और जीवन-स्तर में गिरावट का अनुपात भी है। यह अंतर भयावह भविष्य की ओर भी इशारा करता है।

6 से 14 साल की कुल लड़कियों में से 50 प्रतिशत लड़कियां स्कूल से ड्रॉप-आउट हो जाती हैं। एशिया महाद्वीप में भारत की महिला साक्षरता दर सबसे कम है। गौरतलब है कि ‘नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रंस राइट्स’ यानी एनसीपीसीआर की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत में 6 से 14 साल तक की ज्यादातर लड़कियों को हर दिन औसतन 8 घंटे से भी ज्यादा समय केवल अपने घर के छोटे बच्चों को संभालने में बीताना पड़ता है। इसी तरह, सरकारी आकड़ों में दर्शाया गया है कि 6 से 10 साल की जहां 25 प्रतिशत लड़कियों को स्कूल से ड्रॉप-आउट होना पड़ता है, वहीं 10 से 13 साल की 50 प्रतिशत (ठीक दोगुनी) से भी ज्यादा लड़कियों को स्कूल से ड्रॉप-आउट हो जाना पड़ता है। 2008 के एक सरकारी सर्वेक्षण में 42 प्रतिशत लड़कियों ने यह बताया कि वे स्कूल इसलिए छोड़ देती हैं, क्योंकि उनके माता-पिता उन्हें घर संभालने और अपने छोटे भाई-बहनों की देखभाल करने को कहते हैं।

इस गैरबराबरी को बच्चियों की कमी नहीं, बल्कि उनके खिलाफ मौजूद स्थितियों के तौर पर देखा जाना चाहिए। अगर लड़की है, तो उसे ऐसा ही होने चाहिए, इस प्रकार की बातें उसके सुधार की राह में बाधाएं बनती हैं। इन्हीं सब स्थितियों और भेदभावों को मिटाने के मकसद से ‘बालिका दिवस’ मनाने पर जोर दिया जा रहा है। इसे बच्चियों की अपनी पहचान न उभर पाने के पीछे छिपे असली कारणों को सामने लाने के रूप में मनाने की जरुरत है, जो सामाजिक धारणा को समझने के साथ-साथ बच्चियों को बहन, बेटी, पत्नी या मां के दायरों से बाहर निकालने और उन्हें सामाजिक भागीदारी के लिए प्रोत्साहित करने में मदद के तौर पर जाना जाए।

Friday 17 September 2010

"जाल-जगत के राजदुलारे....दीनदयाल!" - डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"

दीनदयाल शर्मा, हिंदी अर राजस्थानी रा थापित बाल साहित्यकार हैं। आं' राष्ट्रीय स्तर माथै बाल साहित्य में आपरी अळगी पिछाण बणाई है। हिंदी अर राजस्थानी में आपरी दो दर्जन सूं बेसी पोथ्यां छपी है । चंदर री चतराई , टाबर टोळी, बात रा दाम,म्हारा गुरु जी, शंखेसर रा सींग, बाळपणै री बातां, घणी स्याणप, फैसला, फैसला बदल गया, चिंटू पिंटू की सूझ, बड़ों के बचपन की कहानियां, चमत्कारी चूर्ण, कर दो बस्ता हल्का, सूरज एक सितारा है, पापा झूठ नहीं बोलते, स्यांती, घर बिगाड़ै गुस्सौ, तूं कांईं बणसी, सुणौ के स्याणौ, गिदगिदी,राजस्थानी बाल साहित्य : एक दृष्टि, नानी तूं है कैसी नानी , चूं - चूं , इक्यावन बाल पहेलियाँ., डुक पच्चीसी, मैं उल्लू हूं, सारी खुदाई एक तरफ, सपने, द ड्रीम्स आदि रा कई संस्करण छप्या है...। आपरा एक दर्जन रेडियो नाटक राज्य स्तर पर प्रसारित होया है..., पगली, मेरा कसूर क्या है, जंग जारी है, मुझे माफ कर दो, पगड़ी की लाज आद ख़ास नाटक है । आकाशवाणी अर दूरदर्शन सूं भी प्रसारित। आजकाल आप टाबरां रै अखबार टाबर टोळी रा मानद साहित्य सम्पादक। आपरा मोबाइल नंबर हैं - 094145 14666, 

पं. दीनदयाल शर्मा के सम्मान में इस रचना के माध्यम से

छोटी सी गुस्ताखी कर रहा हूँ! 



आशा है कि वह इसका भरपूर आनन्द लेंगे!


मैं इस अनजानी भूल के लिए उनसे क्षमा..!


हिन्दी और राजस्थानी के,
लब्ध-प्रतिष्ठित रचनाकार। 
मनोयोग से छाप रहे हैं, 
टाबरटोली सा अखबार।।

बालगीत-कविताएँ रचकर, 
ब्लॉग सजाते हँसी-मजाक। 
कभी-कभी ये जोकर बनकर, 

रखते ऊँची अपनी नाक।।

चूहा बनकर बहुत चाव से, 
पतंग उड़ाते दीनदयाल। 
जाल-जगत के राजदुलारे, 
बच्चों का रखते हैं ख्याल।।

हिन्दी में लिखिए